सोमवार, 30 अप्रैल 2007

इंटरनेट पर सवार भोजपुरी

इंटरनेट पर सवार भोजपुरी

चंडीदत्त शुक्ल, नई दिल्ली

कुछ दिन पहले तक यह सोचना भी मुश्किल था कि लिट्टी-चोखा का जायका इंटरनेट के जरिए फिजी तक पहुंच सकेगा या फिर मॉरिशस में रहने वाले, 71 वर्षीय सौरव परमानंद वेबसाइट पर भोजपुरी का लेख पढ़ सकेंगे। हालांकि अब माहौल बदल चुका है। गंवई भाषा कही जाने वाली भोजपुरी एबीसीडी, यानी आरा, बलिया, छपरा, देवरिया की सीमा से बाहर निकलकर सिंगापुर, सूरीनाम, वेस्टइंडीज, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और जापान समेत 49 देशों तक पहुंच रही है। दरअसल, इन दिनों इंटरनेट पर भोजपुरी से संबंधित वेबसाइट्स की भरमार है। यहां न सिर्फ देशी व्यंजन बनाने की विधि उपलब्ध है, बल्कि ऑर्डर देकर सतुआ, पंचांग, चीनिया केला, गमछा और जर्दा भी मंगाया जा सकता है। गौरतलब है कि 23 नवंबर, 2005 को 43 देशों के 11 हजार, 56 लोगों ने बिहार के विधानसभा चुनाव परिणामों की जानकारी हासिल करने के लिए इन साइट्स की मदद ली। कई लोग भोजपुरिया शादी विकल्प से मनपसंद साथी ढूंढने की कोशिश भी कर रहे हैं। गीत-संगीत की बात करें, तो http://madhu90210।tripod।com/id23।html पर लॉग ऑन कर मनोज तिवारी मृदुल के बगलवाली जान मारली और शहर के तितली घूमे होके मोपेड पे सवार का आनंद लिया जा सकता है, जबकि गुड्डू रंगीला के हमरा हऊ चाहीं व ऐ चिंटुआ के दीदी तनी प्यार करै दे गीत भी साइट पर उपलब्ध हैं। en।wikipedia।org/wiki/Bhojpuri_language पर विजिट कर जाना जा सकता है कि इंडो-ईरानियन लैंग्वेज श्रेणी के तहत भोजपुरी किस स्थान पर है। भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका की वेबसाइट की शुरुआत का हो, का हाल बा! के अपनत्व भरे संबोधन के साथ होती है, वहीं http://222।bhojpuri2orld।org/क्लिक करने पर राउर स्वागत बा जैसी इबारत पढ़ने को मिलती है। यहां लागी नाहीं छूटे रामा, गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबौ, बलम परदेसिया और गंगा किनारे मोरा गांव जैसी चर्चित फिल्मों के गीत भी सुने जा सकते हैं। वैसे, पिछले दिनों डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन द्वारा मुंबईवासी शशि सिंह और सुधीर कुमार की भोजपुरिया।कॉम वेबसाइट को ई कल्चर श्रेणी में पहला पुरस्कार मिलने के साथ यह बात प्रमाणित हो गई है कि साइबर की दुनिया में भोजपुरी धीरे-धीरे ही सही, धाक जमा रही है।


दैनिक जागरण में प्रकाशित

1 टिप्पणी:

renu ahuja ने कहा…

सत्य है, कि आज भोजपुरी अपनी एक अंतराष्ट्रीय पहचान बना चुकी है किसी ने सोचा भी न होगा कि बंधुआ मजदूरी के लिए ले जाए जाने वाले भारतीय मजदूर अपनी संस्कृति के दूर गामी वाहक बन जाएंगे.
यही हमारी भारतीयता की शक्ति है.
आपका लेख अच्छा लगा.
-रेणू.