गुरुवार, 1 नवंबर 2007

स्टील को बनाया सोना॥

स्टील को बनाया सोना॥

विश्व की नंबर दो यूरोपीय इस्पात कंपनी आर्सेलर के रूस की नंबर-एक कंपनी सेवरस्ताल के साथ विलय की घोषणा के बावजूद स्टील किंग लक्ष्मी निवास मित्तल अपनी परियोजना को ताकतवर बताने में जुटे हैं। नाम और संपदा, दोनों के लिहाज से लक्ष्मी निवास बने मित्तल न केवल विश्व के तीसरे रिचेस्ट व्यक्ति (फो‌र्ब्स के अनुसार) और पहले नंबर पर कायम धनी भारतीय हैं, बल्कि वे 2006 में 14.8 बिलियन डॉलर की संपदा के साथ ब्रिटेन के सर्वाधिक धनी एशियन की कुर्सी पर कब्जा भी जमाए हुए हैं। भविष्य को राह दिखाने वाली उनकी सोच और शक्ति का लोहा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मानते हैं, तभी तो उन्होंने कुछ अरसा पहले मित्तल से अपील की थी, आप अपने होमलैंड लौट आएं और भारतीय स्टील उद्योग के निर्माण में मदद करें..। हालांकि उपलब्धियों और प्रशंसा से दूर लक्ष्मी मित्तल के कदम थमते नहीं। लक्ष्मी केवल व्यापारी नहीं हैं, वे भारत को प्रोफे लक्ष्मी निवास मित्तल ने स्टील उद्योग को भी सोने की खदान बना दिया। इसके पीछे दूरदृष्टि और कड़ा परिश्रम ही प्रमुख कारक हैं ..
ेशनलिज्म से लैस भी करना चाहते हैं। 360 मिलियन की लागत से राजस्थान सरकार के साथ मिलकर एलएनएम फाउंडेशन के आईटी इंस्टीटयूट की जयपुर में स्थापना से तो यही लगता है। कोलकाता में जन्मे लक्ष्मी रहते भले ही लंदन में हों, लेकिन उनकी जड़ें भारत में गहरे तक हैं। झारखंड में स्टील प्रोडक्शन ग्रीनफील्ड यूनिट की शुरुआत का फैसला इसी बात को साबित करता है। 2002 तक 8.7 बिलियन डॉलर टर्न ओवर का व्यापार करने वाला मित्तल समूह देखते ही देखते यदि कई गुना प्राफिट हासिल करने लगा, तो यह कोई चमत्कार नहीं था। दरअसल, बिना रिस्क के गेम नहीं होता। लक्ष्मी मित्तल जब 26 साल के थे, तभी उन्हें व्यापार संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई थी।
इंडोनेशिया में स्टील कंपनी स्थापित कर लक्ष्मी विश्व के स्टील किंग बने, तो इसके पीछे साफ दृष्टि व कठोर श्रम का ही हाथ है। इस्पात इंटरनेशनल एनवी, इस्पात कारमेट व इंडो इस्पात जैसी 12 कंपनियों के मालिक लक्ष्मी व्यापार में भी सक्रिय हैं। उन्हें एक जुनून भी है-बीमार पड़ी स्टील कंपनियों को खरीदना और चमकते सोने में बदल देना।
कनाडा से त्रिनिदाद व टोबैगो से कजाकिस्तान व इंडोनेशिया तक व्यापार कर रहे मित्तल यह बताने में सफल रहे हैं कि जुनून हो, तो स्टील भी बन सकता है सोना!
चण्डीदत्त शुक्ल

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