गुरुवार, 1 नवंबर 2007

साहित्य को नहीं मिला उचित सम्मान

हिंदी साहित्य को नहीं मिला उचित सम्मान
-रोशनी एक किताब /जो अंधेरे में ही पढ़ी जा सकती है / अंधेरा / एक रास्ता / जो सूरज के घर की तरफ खुलता है..
तकरीबन 32 साल पहले, 12वीं के छात्र, 18 वर्षीय माधव भान ने लिखी थी यह कविता। एक पत्रिका में कविता छपी, पारिश्रमिक के रूप में 7 रुपए का मनीऑर्डर मिला और गाजियाबादवासी माधव की खुशी का ठिकाना न रहा। इस तरह हुई साहित्य से पहली मुलाकात, जो बाद में बरस-दर-बरस गहराती गई। कभी मीरा, सूर, कबीर की भक्ति से प्रभावित हुए, तो कभी रहस्यवाद की गुत्थियां सुलझाने में लगे। फिलहाल, 50 के हो चुके हैं माधव। जिंदगी की इस यात्रा में उन्होंने तमाम रंग देखे, जो धीरे-धीरे उनकी शख्सियत का हिस्सा भी बन गए। कभी मन कहता, कैमरा उठाओ और चल दो रेगिस्तान की खाक छानने, तो कुछ दिन बाद उठती ललक, अब नई प्रतिभाओं को मंच देना है! यह जुनून भी तब, जबकि छोटी उम्र में ही वे आयरलैंड चले गए थे। कुदरत की छांव में बैठने और ट्रैवलिंग का शौक उन्हें बार-बार देश की ओर खींच लाता। आयरलैंड में रेस्टोरेंट व्यवसाय का सफल संचालन करते हुए माधव बार-बार भारत आए। बीच में फिल्म निर्माण की योजना भी बनाई और श्याम बेनेगल से मिले। श्याम बोले, पहले अच्छी-सी स्क्रिप्ट चुनिए, तो विभिन्न साहित्यकारों से मिलने चल दिए। यही मौका था, जब माधव को अहसास हुआ कि साहित्य में भी जमकर मार्केटिंग की जाती है। जितने साहित्यकार, उतने प्रस्ताव, मेरी यह कहानी अनूठी है, इस पर फिल्म बनाइए! माधव हतप्रभ रह गए, इसी बीच मिले भावुकता से भरपूर स्वप्नदर्शी निर्मल। उन्होंने भी साहित्यिक कृति पर फिल्म बनाने के लिए कहा, लेकिन यह सिफारिश अपनी रचना के लिए नहीं थी। इसके बाद चेक कविताओं का अनुवाद करते समय संकलन प्राग् वर्ष के आवरण के लिए निर्मल ने माधव का एक फोटोचित्र इस्तेमाल किया। फिर तो यह जुड़ाव माधव को साहित्य की दुनिया में फिर-से खींचने लगा, लेकिन पूरी वापसी की वजह बनी एक खास घटना। हुआ यूं कि निर्मल अस्वस्थ थे। उनका हालचाल जानने माधव एम्स पहुंचे। बातचीत के दौरान निर्मल ने बताया, मेरी 37 किताबें प्रकाशकों के पास हैं, लेकिन मुझे नाममात्र रॉयल्टी मिल रही है। यह बात माधव को आहत कर गई। बाद में उन्होंने चर्चित व्यवसायी अतुल गर्ग को यह वाकया सुनाया। उन्होंने कहा, जब निर्मल वर्मा जैसे साहित्यकार को ऐसी उपेक्षा सहनी पड़ रही है, तब युवा रचनाकारों के साथ क्या होता होगा? उन्होंने ही माधव को सुझाया, क्यों न ऐसे प्रकाशन की शुरुआत की जाए, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हिंदी साहित्य का प्रकाशन करे और साहित्यकारों का शोषण समाप्त हो सके! इस तरह पड़ी एक अनूठे प्रकाशन रे माधव की नींव।
अतुल जी के पुत्र, लंदन से एमबीए की पढ़ाई कर लौटे गौरव गर्ग व राघव गर्ग तथा ज्ञानपीठ में वर्षो तक सक्रिय रहे साहित्यकार-कलाकार अशोक भौमिक ने कामकाज संभाला। इरादा नेक था, इसलिए पहल भी हुई खास। रे माधव ने औरों की तरह कहानी संकलन तो छापे, लेकिन अंदाज अलग था। माधव और साथियों ने संकलन के लिए बतौर संपादक उन्हें चुना, जो साहित्यिक पत्रिकाओं का वर्षो तक संपादन कर चुके थे, यानी पहल के संपादक ज्ञानरंजन, सारिका के एक दशक तक प्रमुख रहे अवध नारायण मुद्गल और रवींद्र कालिया।
रे माधव ने भवदेव पांडेय संकलित हिंदी कहानी का पहला दशक : शुरुआती दौर की कहानियां और मुनि क्षमासागर की कविताओं को मुक्ति शीर्षक से प्रकाशित किया, वहीं अब योजना है—स्वर्णाक्षर श्रृंखला के तहत प्रसाद, प्रेमचंद, रवींद्रनाथ, शरत, बंकिम, कुशवाहा कांत, जोगेंदर पाल और उपेंद्र नाथ अश्क का साहित्य प्रकाशित करने की। माधव बताते हैं, यह संकलन अंतरराष्ट्रीय पैकेजिंग के साथ पेश किया जाएगा। आखिरकार, हिंदी जैसा साहित्य और कहां है?
वे साफ कहते हैं, वैभवशाली हिंदी को उचित सम्मान नहीं मिला। माधव को उम्मीद है कि हिंदी प्रेमी उनकी इच्छा पूरी करेंगे और उन्हें सिर्फ सरकारी खरीद पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। रे माधव की ओर से अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में साहित्य प्रकाशन किया जाएगा। किशोर, बाल साहित्य के अंतर्गत दद्दू की कहानियां, बुधि का लौटना, मेडल और रंकनी देवी की तलवार जैसी कहानियां लेकर माधव आ रहे हैं, तो यह उनकी देशी सोच का ही प्रमाण है। वे फिल्मकार डेविड के साथ लोकेशन देखने राजस्थान जाते जरूर हैं, लेकिन मौका मिलते ही सुप्रकाश सरीखे युवा चित्रकारों के साथ बैठकर कला-चर्चा करना नहीं भूलते। परिणाम—प्रतिभाओं को मौका देने के लिए माधव ने ग्राफिक डिजाइन स्टूडियो की शुरुआत भी की! फिलहाल, योजना है कि हर माह कम से कम 10 किताबें प्रकाशित की जाएं और जितना कागज खर्च करें, उतने ही पेड़ लगाए जाएं। प्रस्ताव है कि लाभांश को गरीब बच्चियों की पढ़ाई पर खर्च किया जाए और वर्ष के सर्वोत्कृष्ट पुस्तक आवरण, बेहतरीन लघु पत्रिका को पुरस्कृत भी किया जाए। नहीं, बात यहीं खत्म नहीं होती..निर्मल जी की तरह शेष साहित्यकार शोषण का शिकार न हों, इसके लिए रे माधव प्रकाशन ने 75 वर्ष आयु के साहित्यकारों को एडवांस रॉयल्टी देने का मन बनाया है!
चण्डीदत्त शुक्ल

कोई टिप्पणी नहीं: